दुनिया की दो सबसे बड़ी ताकतें — अमेरिका और चीन — एक बार फिर टकराव के रास्ते पर हैं। दक्षिण चीन सागर, ताइवान और एशिया में बढ़ते रणनीतिक तनाव के बीच, चीन ने अब अमेरिका की आर्थिक और तकनीकी नीति में कमजोरियों को पहचान लिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले महीनों में बीजिंग इसका फायदा उठाकर अमेरिका के खिलाफ आक्रामक कूटनीतिक कदम उठा सकता है।
आर्थिक मोर्चे पर नई रणनीति
चीन अब अमेरिका के सेमीकंडक्टर और तकनीकी प्रतिबंधों का जवाब सप्लाई चेन पर नियंत्रण बढ़ाकर देने की तैयारी में है। रिपोर्ट्स के अनुसार, बीजिंग ने रेयर अर्थ मेटल्स और लिथियम सप्लाई को सीमित करने की योजना बनाई है — ये वही तत्व हैं जो अमेरिकी टेक कंपनियों के लिए बेहद जरूरी हैं। अगर चीन ये कदम उठाता है, तो इससे अमेरिका के AI और चिप मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पर सीधा असर पड़ेगा।
सैन्य और क्षेत्रीय दबदबा बढ़ाने की कोशिश
दक्षिण चीन सागर में चीन की गतिविधियाँ लगातार बढ़ रही हैं। हाल ही में, चीनी नौसेना ने कई बार अमेरिकी जहाजों को “चेतावनी ज़ोन” से बाहर रहने की धमकी दी है। इससे इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में तनाव और बढ़ गया है, जहाँ भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया पहले से ही अमेरिका के साथ QUAD गठबंधन का हिस्सा हैं।
भारत के लिए क्या मायने हैं?
भारत इस भू-राजनीतिक खेल में एक केंद्रीय भूमिका निभा सकता है।अमेरिका भारत को एशिया में चीन के मुकाबले एक मजबूत रणनीतिक साझेदार के रूप में देखता है। ऐसे में भारत को अपनी विदेश नीति को संतुलित रखते हुए आर्थिक और सुरक्षा दोनों मोर्चों पर फोकस करना होगा। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को अपनी रक्षा साझेदारी बढ़ाने के साथ-साथ चीन पर तकनीकी निर्भरता कम करनी चाहिए।
भविष्य की दिशा
अगर अमेरिका और चीन के बीच तनाव और बढ़ता है, तो इसका असर पूरे एशिया पर पड़ेगा। भारत को इस स्थिति में कूटनीतिक संतुलन बनाए रखते हुए दोनों देशों से अपने हितों की रक्षा करनी होगी। भविष्य में यह संघर्ष केवल सैन्य नहीं बल्कि तकनीकी, आर्थिक और भू-राजनीतिक मुकाबला बन सकता है।