Lalu Yadav Politics: एक दौर ऐसा भी आया जब नीतीश-बीजेपी गठजोड़ ने लालू प्रसाद यादव की RJD को लगभग कोमा में पहुँचा दिया था। कभी सत्ता पर राज करने वाली RJD सिर्फ 20-22 सीटों तक सिमट गई। लेकिन 2015 में हालात बदले और बिना ‘द्रोण पर्वत’ उठाए पार्टी को मानो ‘संजीवनी’ मिल गई।
पटना: Bihar की राजनीति में 2015 का विधानसभा चुनाव हमेशा याद किया जाएगा। यह चुनाव न सिर्फ़ सीटों का खेल था, बल्कि राजनीतिक समीकरण और रणनीति का भी असली इम्तिहान था। 1994 के बाद पहली बार लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार ने साथ आकर भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ा। नतीजा यह हुआ कि 2010 में हाशिये पर पहुँची लालू की पार्टी राजद (RJD) फिर से शीर्ष पर लौट आई और 80 सीटें जीतकर सत्ता के केंद्र में आ गई।
लालू-नीतीश की ऐतिहासिक जोड़ी
2010 के चुनाव में लालू यादव की RJD तीसरे नंबर की पार्टी बनकर रह गई थी। लेकिन 2015 में नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव के एक साथ आने से राजनीतिक हालात बदल गए। महागठबंधन ने जातीय समीकरण और जनता की उम्मीदों को भुनाया। भाजपा जहाँ नरेंद्र मोदी के करिश्मे के सहारे मैदान में उतरी थी, वहीं लालू-नीतीश की जोड़ी ने जमीनी समीकरण पर दांव लगाया।
लालू यादव ने इस दौर में अपनी विरासत तेजस्वी यादव को सौंपते हुए RJD के लिए एक नया अध्याय भी शुरू किया।
मोहन भागवत का बयान बना टर्निंग प्वाइंट
सितंबर 2015 में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने ‘पांचजन्य’ और ‘ऑर्गेनाइज़र’ को दिए इंटरव्यू में कहा था कि आरक्षण नीति की समीक्षा होनी चाहिए और इसके लिए एक गैर-राजनीतिक समिति गठित की जानी चाहिए।
यह बयान गुजरात के पटेल आंदोलन के संदर्भ में दिया गया था, लेकिन इसकी टाइमिंग गलत साबित हुई। बिहार विधानसभा चुनाव 12 अक्टूबर से शुरू होना था और भागवत का यह बयान ठीक उसी समय सामने आया।
राजनीति के माहिर खिलाड़ी लालू प्रसाद यादव ने इसे तुरन्त लपक लिया। उन्होंने इसे ऐसा चुनावी मुद्दा बना दिया, जिसने पूरे बिहार में अगड़े बनाम पिछड़े की बहस छेड़ दी।
“माई का दूध पिया है तो…” लालू का जवाब
लालू यादव ने भाजपा और आरएसएस को आरक्षण विरोधी बताकर सीधा हमला बोला। 21 सितंबर 2015 को उन्होंने ट्वीट किया:
“तुम आरक्षण खत्म करने की बात करते हो, हम इसे आबादी के अनुपात में बढ़ाएंगे। माई का दूध पिया है तो खत्म कर दिखाओ।”
इसके अलावा, उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी निशाना साधा और कहा कि क्या मोदी अपने “आका भागवत” के कहने पर आरक्षण खत्म करेंगे?
इन बयानों ने बिहार के पिछड़े और अति पिछड़े वर्ग को एकजुट कर दिया। देखते ही देखते यह चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा बन गया।
दूसरे चरण तक साफ हो गई तस्वीर
चुनाव जैसे-जैसे आगे बढ़ा, माहौल और स्पष्ट होता गया। लालू यादव ने रोज़ाना आरक्षण का मुद्दा उठाकर भाजपा को बैकफुट पर ला दिया। भाजपा ने सफाई देने की कोशिश की, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
दूसरे चरण के मतदान के बाद ही यह साफ हो गया था कि महागठबंधन, एनडीए से आगे निकल रहा है। दशहरा और मुहर्रम की छुट्टियों के बीच भी माहौल नहीं बदला और पिछड़े वर्ग की एकजुटता ने भाजपा को गहरी चोट दी।
प्रशांत किशोर का मास्टरस्ट्रोक
महागठबंधन की जीत में प्रशांत किशोर (PK) का रोल भी बेहद अहम रहा। चुनावी रणनीतिकार के रूप में उन्होंने नारा गढ़ा – “बिहार में बहार है, नीतीशे कुमार है।”
यह नारा हर गली-गाँव तक पहुँच गया। मोबाइल रिंगटोन से लेकर सभाओं तक, यह नारा लोगों की ज़ुबान पर चढ़ गया।
प्रशांत किशोर ने पूरे बिहार में सर्वे कराया और उसी आधार पर उम्मीदवार चुने गए। यहाँ तक कि तेजस्वी यादव को डिप्टी सीएम बनाने में भी उनकी भूमिका मानी जाती है।
एनडीए की सबसे बड़ी गलती – सीएम फेस का अभाव
2015 चुनाव में एनडीए की एक बड़ी कमी थी – उन्होंने मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया। जनता के मन में यह सवाल बना रहा कि अगर एनडीए जीता तो सीएम कौन बनेगा?
दूसरी तरफ, महागठबंधन ने नीतीश कुमार को सीएम उम्मीदवार घोषित कर स्पष्टता दे दी। जनता ने स्थिर नेतृत्व के लिए नीतीश को चुना और भाजपा को किनारे कर दिया।
नतीजा – भाजपा की हार, महागठबंधन की जीत
2015 के विधानसभा चुनाव का सबसे बड़ा सबक यही रहा कि राजनीतिक बयानबाजी, जातीय समीकरण और रणनीति अगर समय पर सही तरीके से गढ़ी जाए, तो बड़े से बड़ा करिश्मा भी फीका पड़ सकता है।
मोहन भागवत का बयान, लालू यादव की ललकार, नीतीश कुमार का अनुभव और प्रशांत किशोर की रणनीति—इन चारों ने मिलकर भाजपा की हार की पटकथा लिख दी।
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