स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से देश को संबोधित करते हुए PM Narendra Modi ने एक ऐसा बयान दिया जिसने राजनीतिक हलकों में भूचाल ला दिया। पीएम मोदी ने अपने भाषण में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) को “दुनिया का सबसे बड़ा एनजीओ” बताते हुए संगठन की जमकर तारीफ की। उन्होंने कहा कि आरएसएस ने पिछले 100 वर्षों में राष्ट्र निर्माण में ऐतिहासिक योगदान दिया है।
यह पहली बार है जब किसी प्रधानमंत्री ने लाल किले से खुले तौर पर आरएसएस की प्रशंसा की है। मोदी के इस बयान को जहां संघ और बीजेपी के लिए गर्व का क्षण माना जा रहा है, वहीं विपक्षी दलों ने इसे लोकतांत्रिक मूल्यों और संविधान पर सवाल खड़ा करने वाला कदम बताया है।
PM Modi का बयान क्यों है खास?
प्रधानमंत्री ने कहा:
“आज मैं गर्व से एक ऐसी संस्था का जिक्र करना चाहता हूं, जिसकी स्थापना सौ साल पहले हुई थी। चरित्र निर्माण के माध्यम से राष्ट्र निर्माण का संकल्प लेकर स्वयंसेवक मातृभूमि की सेवा कर रहे हैं। यह 100 वर्षों की सेवा और समर्पण का सुनहरा अध्याय है।”
यह बयान उस समय आया है जब पिछले कुछ महीनों से राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा थी कि बीजेपी और संघ के बीच रिश्ते पहले जैसे मजबूत नहीं हैं। ऐसे में मोदी का यह बयान एक तरह से यह संदेश है कि पार्टी और संघ की विचारधारा और लक्ष्य अब भी एक ही हैं।
#WATCH | Delhi | On being asked if there are any differences between BJP & RSS, senior RSS leader Ram Madhav says, “RSS and BJP are two organisations linked under one ideological family. BJP does political work, and RSS works in society among the community. There is no friction… pic.twitter.com/KEXODrxj5m
— ANI (@ANI) August 16, 2025
RSS और बीजेपी: एक वैचारिक परिवार
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना 1925 में नागपुर में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने की थी। संगठन का मकसद था चरित्रवान स्वयंसेवकों के जरिए राष्ट्रवाद की भावना को मजबूत करना।
बीजेपी का सफर भी आरएसएस से ही शुरू होता है। 1951 में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भारतीय जनसंघ की स्थापना की, जिसे आगे चलकर भारतीय जनता पार्टी (BJP) का रूप मिला। आरएसएस को बीजेपी की विचारधारा की जड़ माना जाता है।
वरिष्ठ आरएसएस नेता राम माधव ने इस मौके पर कहा कि “बीजेपी राजनीतिक कार्य करती है और आरएसएस समाज में। दोनों एक वैचारिक परिवार के अंग हैं और इनके बीच मनमुटाव की कोई गुंजाइश नहीं है।”
विपक्षी दलों का हमला
पीएम मोदी के इस बयान पर विपक्षी दलों ने तीखी प्रतिक्रिया दी।
- कांग्रेस: कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा, “यह बयान संविधान और धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है। प्रधानमंत्री मोदी ने लाल किले से संघ की तारीफ कर यह साबित कर दिया कि उनकी कुर्सी मोहन भागवत की कृपा पर टिकी है।”
- AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी: ओवैसी ने एक्स (Twitter) पर लिखा कि “अगर प्रधानमंत्री को आरएसएस की तारीफ करनी थी तो नागपुर जाकर करते। लाल किले से यह परंपरा गलत है और लोकतंत्र के लिए खतरनाक संकेत है।”
- लेफ्ट पार्टियां: CPI(M) नेताओं ने कहा कि आरएसएस को लाल किले से सम्मान देना भारत की धर्मनिरपेक्ष पहचान के खिलाफ है।
विपक्ष का आरोप है कि पीएम मोदी ने स्वतंत्रता दिवस जैसे राष्ट्रीय मंच का इस्तेमाल राजनीतिक संदेश देने के लिए किया।
संघ की 100वीं वर्षगांठ और मोदी का संदेश
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस साल अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूरे कर रहा है। संगठन शिक्षा, सेवा, आपदा राहत, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास जैसे कई क्षेत्रों में काम करता है।
मोदी का लाल किले से यह बयान संघ की शताब्दी वर्षगांठ पर एक सम्मान के रूप में भी देखा जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि इससे न केवल बीजेपी कार्यकर्ताओं में उत्साह बढ़ेगा बल्कि आने वाले चुनावों में यह एक बड़ा मुद्दा भी बन सकता है।
श्यामा प्रसाद मुखर्जी और अनुच्छेद 370 का जिक्र
अपने भाषण में पीएम मोदी ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि मुखर्जी ने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने का विरोध किया था और इसी के चलते उन्हें जेल जाना पड़ा, जहां उनकी मृत्यु हो गई।
मोदी ने कहा कि आर्टिकल 370 को हटाना मुखर्जी के सपने को पूरा करना था और यह “एक राष्ट्र, एक संविधान” के मंत्र को साकार करने वाला कदम है।
ऐतिहासिक संदर्भ: आरएसएस और लाल किला
यह शायद पहली बार है जब किसी प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता दिवस के मंच से आरएसएस की सीधी प्रशंसा की है।
- 1963 में RSS को गणतंत्र दिवस परेड में शामिल होने का न्योता मिला था।
- आपातकाल (1975-77) के दौरान संगठन पर प्रतिबंध लगा।
- आजादी के बाद से लेकर अब तक संघ को लेकर कई विवाद रहे हैं।
फिर भी, आज आरएसएस देश का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन माना जाता है और इसका राजनीतिक व सामाजिक प्रभाव लगातार बढ़ा है।
मोदी का बयान और राजनीतिक संदेश
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह बयान सिर्फ आरएसएस की तारीफ नहीं, बल्कि एक राजनीतिक संदेश भी है।
- यह बीजेपी और आरएसएस के बीच मजबूत रिश्ते को दिखाने का प्रयास है।
- साथ ही यह विपक्ष को खुला मुद्दा देता है कि वह धर्मनिरपेक्षता और संविधान के नाम पर सरकार को घेर सके।
- संघ के 100 साल पूरे होने पर यह बयान कार्यकर्ताओं के लिए एक प्रेरणादायी पल भी है।
लाल किले से आया यह संदेश आने वाले समय में भारतीय राजनीति के लिए बेहद महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।