असदुद्दीन ओवैसी ने संसद में पेश किए गए उस बिल पर कड़ा विरोध जताया है, जिसमें प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को हटाने का प्रावधान शामिल है। ओवैसी ने सवाल उठाते हुए कहा कि क्या वास्तव में राष्ट्रपति के पास प्रधानमंत्री को हटाने का अधिकार है? उन्होंने स्पष्ट किया कि भारतीय संविधान के मुताबिक राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही कदम उठाते हैं, ऐसे में इस बिल की संवैधानिकता पर गंभीर संदेह खड़ा होता है।
ओवैसी ने सरकार से सीधा सवाल किया कि अगर ऐसा प्रावधान लागू होता है तो लोकतांत्रिक ढांचे पर क्या असर पड़ेगा। उन्होंने जोर देकर कहा कि संविधान की मूल भावना के अनुसार प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों की प्रक्रिया से ही पद पर बने रहते हैं, और उन्हें हटाने की शक्ति सिर्फ संसद या विधानसभा में विश्वास मत के माध्यम से होती है।
इस दौरान ओवैसी ने सरकार से यह भी स्पष्टीकरण मांगा कि आखिर इस बिल का उद्देश्य क्या है और क्या यह संविधान के बुनियादी ढांचे के खिलाफ नहीं है। उनका कहना था कि यदि इस प्रकार का प्रावधान लागू कर दिया गया तो यह न केवल केंद्र और राज्यों की सरकारों को अस्थिर करेगा बल्कि जनता के जनादेश को भी कमजोर करेगा।
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ओवैसी की आपत्ति के बाद यह मुद्दा संसद में चर्चा का केंद्र बन गया है। कई अन्य विपक्षी दलों ने भी इस पर अपनी चिंता जताई है और सरकार से बिल को लेकर स्पष्ट जवाब मांगा है।
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने संसद में पेश किए गए पीएम-सीएम को हटाने वाले बिल पर जमकर नाराज़गी जताई है। उन्होंने इसे संविधान के खिलाफ बताते हुए कई गंभीर सवाल उठाए। ओवैसी ने कहा कि संविधान के अनुसार राष्ट्रपति केवल मंत्रिपरिषद की सलाह पर काम करते हैं, लेकिन बिल में लिखा गया है कि प्रधानमंत्री को सीधे राष्ट्रपति हटा सकते हैं। उनके मुताबिक यह प्रावधान संविधान के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन है और लोकतंत्र की बुनियाद को हिला देगा।
ओवैसी का कहना है कि इस कानून के लागू होने पर केंद्र सरकार के हाथों में राज्यों को अस्थिर करने की शक्ति आ जाएगी। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि अगर केंद्र किसी राज्य सरकार के चार-पांच मंत्रियों को गिरफ्तार कर ले, तो पूरी सरकार अपने आप गिर जाएगी। ऐसे में राज्यों की स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक व्यवस्था खत्म हो जाएगी और पूरा नियंत्रण केंद्र के पास चला जाएगा।
उन्होंने याद दिलाया कि पिछले हफ्ते भी जब यह बिल संसद में पेश हुआ था, तब उन्होंने कड़ा विरोध जताते हुए सरकार पर ‘पुलिस स्टेट’ बनाने का आरोप लगाया था। ओवैसी का कहना है कि यह बिल जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों से अधिकार छीन लेगा और संविधान की भावना के खिलाफ है।
बिल पर क्यों मचा घमासान?
दरअसल, 130वें संविधान संशोधन विधेयक में यह प्रावधान है कि यदि प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री किसी गंभीर अपराध में फंसते हैं और लगातार 30 दिन तक हिरासत में रहते हैं, तो उन्हें पद से हटा दिया जाएगा। यही नियम केंद्रीय या राज्य मंत्रियों और दिल्ली सरकार के मंत्रियों पर भी लागू होगा। ऐसे मामलों में राष्ट्रपति या राज्यपाल, संबंधित प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री की सलाह पर 31वें दिन उन्हें पद से हटा देंगे।
ओवैसी की आपत्ति
ओवैसी ने संसद में कहा कि यह कदम न केवल चुनी हुई सरकार पर प्रहार है, बल्कि सत्ता के तीनों स्तंभों—विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका—की स्वतंत्रता को भी कमजोर कर देगा। उनके अनुसार, इस कानून के चलते जनता का मतदान और जनादेश महत्वहीन हो जाएगा और लोकतांत्रिक ढांचा कमजोर पड़ेगा।
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