अमेरिका और भारत के बीच चल रहे टैरिफ विवाद पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख Mohan Bhagwat ने बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार को किसी भी दबाव या दबाव-युक्त माहौल में नहीं होना चाहिए। भागवत के मुताबिक, अगर ट्रेड स्वतंत्र और निष्पक्ष रहेगा तभी देशों की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी और विश्व स्तर पर सहयोग की भावना भी बढ़ेगी।
अमेरिका-भारत के बीच बढ़ता तनाव
दरअसल, हाल ही में अमेरिका ने भारतीय उत्पादों पर भारी टैरिफ लगाने की चेतावनी दी है। अमेरिकी प्रशासन का कहना है कि वह अपने उद्योगों को सुरक्षा देना चाहता है, जबकि भारत का मानना है कि यह कदम मुक्त व्यापार की भावना के खिलाफ है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारतीय स्टील, एल्युमिनियम और अन्य उत्पादों पर 50% तक टैरिफ लगाने की घोषणा की थी। इस फैसले का सीधा असर भारतीय निर्यातकों पर पड़ सकता है।
भारत सरकार भी इस विवाद को लेकर सतर्क है। वित्त मंत्रालय और वाणिज्य मंत्रालय ने संकेत दिए हैं कि वह प्रभावित उद्योगों को राहत पैकेज देने पर विचार कर रहे हैं। इसी बीच, मोहन भागवत का बयान ऐसे समय आया है जब भारतीय व्यापार जगत में अनिश्चितता का माहौल है।
भागवत ने क्या कहा?
मोहन भागवत ने अपने संबोधन में कहा – “अंतरराष्ट्रीय ट्रेड को हमेशा दबाव से मुक्त रहना चाहिए। यदि व्यापार दबाव और विवाद के बीच होगा, तो उसका असर दोनों देशों की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। भारत को अपनी नीतियां इस तरह बनानी चाहिए कि वह किसी भी बाहरी दबाव में न आए।”
उन्होंने आगे कहा कि आज की वैश्विक अर्थव्यवस्था आपस में जुड़ी हुई है। ऐसे में यदि कोई देश संरक्षणवादी नीतियां अपनाता है तो उसका असर बाकी देशों पर भी पड़ता है। भागवत का मानना है कि भारत को दीर्घकालिक रणनीति बनाकर आत्मनिर्भरता पर ध्यान देना चाहिए ताकि किसी भी विवाद का असर सीमित रह सके।
विशेषज्ञों की राय
आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि अगर अमेरिका और भारत के बीच टैरिफ विवाद लंबा खिंचता है तो इसका असर दोनों देशों पर पड़ेगा। भारत के लिए अमेरिका एक बड़ा निर्यात बाजार है। खासकर इंजीनियरिंग सामान, फार्मा प्रोडक्ट्स और टेक्सटाइल्स पर असर पड़ सकता है।
एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के सदस्य का कहना है – “भारत को इस मौके पर अपनी नीतियों को संतुलित करना होगा। अगर अमेरिका टैरिफ बढ़ाता है तो भारत भी जवाबी कदम उठा सकता है, लेकिन लंबे समय में बातचीत ही समाधान है।”
दूसरी ओर, अमेरिकी विशेषज्ञों का कहना है कि भारत के लिए भी अमेरिका एक अहम पार्टनर है और यदि दोनों देश सहयोग की राह अपनाते हैं तो यह वर्ल्ड ट्रेड सिस्टम के लिए अच्छा संदेश होगा।
सरकार की रणनीति
सूत्रों के मुताबिक, भारत सरकार उन सेक्टर्स को आर्थिक मदद देने की योजना बना रही है जिन पर अमेरिकी टैरिफ का ज्यादा असर पड़ेगा। साथ ही, भारत वैकल्पिक निर्यात बाजारों की तलाश भी कर रहा है ताकि अमेरिकी दबाव कम किया जा सके।
इसके अलावा, भारत ने WTO (विश्व व्यापार संगठन) के जरिए भी अपनी आपत्ति दर्ज कराई है। सरकार का मानना है कि अगर यह विवाद ज्यादा बढ़ता है तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कानूनी विकल्प भी अपनाए जा सकते हैं।
टैरिफ विवाद का असर
- निर्यात में गिरावट: भारतीय उत्पाद अमेरिकी बाजार में महंगे हो जाएंगे, जिससे निर्यात घट सकता है।
- विदेशी निवेश पर असर: निवेशक अनिश्चितता से बचने के लिए भारत में निवेश कम कर सकते हैं।
- उद्योगों पर दबाव: खासकर छोटे और मध्यम उद्योग, जो अमेरिका पर निर्भर हैं, उन्हें बड़ा झटका लग सकता है।
- ग्राहकों पर बोझ: अगर अमेरिकी कंपनियां भारतीय प्रोडक्ट्स महंगे खरीदेंगी, तो इसका असर अमेरिकी ग्राहकों तक भी पहुंचेगा।
निष्कर्ष
मोहन भागवत का बयान ऐसे समय आया है जब भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक रिश्ते चुनौती का सामना कर रहे हैं। उनका यह कहना कि “अंतरराष्ट्रीय ट्रेड दबाव में नहीं होना चाहिए” न सिर्फ व्यापारियों को बल्कि नीति-निर्माताओं को भी एक संदेश देता है कि दीर्घकालिक हितों के लिए स्वतंत्र और संतुलित व्यापार जरूरी है।
भारत सरकार के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह अमेरिकी दबाव का सामना करते हुए अपने उद्योगों को सुरक्षा दे और साथ ही बातचीत के जरिए समाधान भी तलाशे। अगर दोनों देशों के बीच समझदारी से हल निकलता है तो यह न केवल भारत-अमेरिका रिश्तों को मजबूत करेगा बल्कि वैश्विक व्यापार को भी स्थिरता प्रदान करेगा।