भारत ने एक बार फिर अपने स्वतंत्र और आत्मनिर्भर विदेश नीति रुख को स्पष्ट करते हुए अमेरिका के साथ चल रही डील पर बड़ा बयान दिया है। भारतीय विदेश मंत्रालय की ओर से यह साफ संदेश दिया गया कि देश किसी भी अंतरराष्ट्रीय समझौते में “हड़बड़ी” या “दबाव” में नहीं आएगा। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, “भारत बंदूक की नोक पर कोई समझौता नहीं करता। हमारे सभी निर्णय राष्ट्रीय हित और रणनीतिक जरूरतों के अनुसार लिए जाते हैं। यह बयान ऐसे समय आया है जब भारत और अमेरिका के बीच रक्षा, टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और व्यापारिक सहयोग पर कई चर्चाएं जारी हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अमेरिका चाहता है कि भारत कुछ अहम रक्षा सौदों पर जल्द निर्णय ले, लेकिन भारत का रुख अब भी संतुलित और आत्मविश्वास से भरा हुआ है।
भारत का स्पष्ट संदेश: दबाव में नहीं, साझेदारी में विश्वास
भारत ने इस बयान के जरिए एक बार फिर यह दिखा दिया है कि वह किसी भी देश, चाहे वह अमेरिका जैसा वैश्विक महाशक्ति ही क्यों न हो, से बराबरी के स्तर पर संवाद करना चाहता है।
विदेश नीति विशेषज्ञों के अनुसार, यह संदेश साफ तौर पर बताता है कि भारत अपने हितों से समझौता नहीं करेगा, चाहे कितनी भी कूटनीतिक दबाव या लॉबिंग क्यों न हो। विशेषज्ञों का मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार का रुख पिछले एक दशक से लगातार यही रहा है — “India First”, यानी पहले भारत का हित। यह नीति न केवल आर्थिक और सैन्य मामलों में बल्कि तकनीकी सहयोग और ऊर्जा सुरक्षा जैसे मुद्दों पर भी लागू होती है।
क्यों चर्चा में है US-India डील?
दरअसल, भारत और अमेरिका के बीच हाल के महीनों में कई अहम समझौतों पर बातचीत चल रही है — जिनमें प्रमुख हैं:
- डिफेंस टेक्नोलॉजी ट्रांसफर (Defence Technology Transfer)
- सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग सहयोग
- स्वच्छ ऊर्जा और हाइड्रोजन मिशन साझेदारी
- साइबर सुरक्षा और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में सहयोग
अमेरिका की ओर से इन सौदों को जल्द आगे बढ़ाने की इच्छा जताई गई थी, लेकिन भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि कोई भी कदम बिना पूरी जांच और रणनीतिक मूल्यांकन के नहीं उठाया जाएगा।
‘आत्मनिर्भर भारत’ की नीति का असर विदेश नीति पर भी
भारत की “आत्मनिर्भर भारत” नीति का असर सिर्फ घरेलू स्तर पर नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय साझेदारी पर भी गहराई से दिख रहा है।
सरकार का कहना है कि भारत हर समझौते में “समान भागीदार” (Equal Partner) के रूप में अपनी भूमिका चाहता है, न कि किसी भी वैश्विक शक्ति का “निर्देश पालनकर्ता”।
विश्लेषकों का मानना है कि यह रुख भारत की बढ़ती भूराजनीतिक शक्ति (Geopolitical Influence) को भी दर्शाता है। अब भारत न केवल एशिया बल्कि वैश्विक स्तर पर भी अपनी शर्तों पर साझेदारी करने की स्थिति में है।
अमेरिका ने क्या कहा?
अमेरिकी अधिकारियों ने भारत के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि अमेरिका भारत के साथ अपने संबंधों को “रणनीतिक साझेदारी” के रूप में देखता है और यह समझता है कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखता है।
व्हाइट हाउस के एक अधिकारी ने कहा, “भारत एक लोकतांत्रिक देश है और उसके निर्णय उसकी संप्रभुता के अंतर्गत हैं। अमेरिका इस सम्मान को समझता है।


