दुनिया भर में साइबर सुरक्षा (Cyber Security) एक बार फिर सुर्खियों में है। अमेरिका ने रूस पर फिर से बड़े साइबर हमलों (Cyber Attacks) और डेटा चोरी के आरोप लगाए हैं। व्हाइट हाउस का कहना है कि हालिया हमलों में सरकारी संस्थानों और निजी कंपनियों के संवेदनशील डाटा को निशाना बनाया गया। रूस ने इन आरोपों को “राजनीतिक रूप से प्रेरित” बताते हुए खारिज कर दिया है। इससे दोनों देशों के बीच पहले से मौजूद तनाव और बढ़ गया है।
अमेरिका के आरोप
- अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने दावा किया है कि रूस समर्थित हैकर समूहों ने कई महत्वपूर्ण नेटवर्क को निशाना बनाया।
- हमले अमेरिकी रक्षा ठेकेदारों और तकनीकी कंपनियों पर केंद्रित रहे।
- हैकरों ने लाखों उपयोगकर्ताओं के निजी डाटा और ईमेल सर्वर को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की।
- अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि देश की साइबर सुरक्षा को लेकर सख्त कदम उठाए जाएंगे।
- व्हाइट हाउस के अनुसार, इन हमलों के पीछे रूस के सरकारी समर्थक साइबर समूह सक्रिय हो सकते हैं।
रूस की प्रतिक्रिया
रूस ने अमेरिका के सभी आरोपों को सिरे से नकार दिया है। रूसी विदेश मंत्रालय ने कहा कि अमेरिका बिना सबूत आरोप लगा रहा है, और यह केवल “राजनीतिक दबाव” बनाने का तरीका है। रूस का दावा है कि वह खुद साइबर अपराधों के खिलाफ काम कर रहा है और अंतरराष्ट्रीय सहयोग का समर्थक है।
वैश्विक साइबर सुरक्षा पर असर
इस विवाद ने वैश्विक स्तर पर साइबर सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ा दी है। कई देशों ने अपने डेटा सुरक्षा ढांचे को मजबूत करने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं। बड़े तकनीकी संगठनों ने चेतावनी दी है कि यदि ऐसी घटनाएँ बढ़ीं तो डिजिटल व्यापार पर असर पड़ेगा। विशेषज्ञों का कहना है कि “साइबर युद्ध” अब आधुनिक कूटनीति का नया हथियार बनता जा रहा है।
विशेषज्ञों की राय
साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे हमलों का उद्देश्य केवल डेटा चोरी नहीं, बल्कि देशों की रणनीतिक और आर्थिक सुरक्षा को कमजोर करना भी होता है। विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि अंतरराष्ट्रीय साइबर कानूनों और पारदर्शी समझौतों की कमी के कारण ऐसे विवाद बार-बार बढ़ते हैं।
Disclaimer
साइबर सुरक्षा को लेकर अमेरिका और रूस के बीच नए आरोपों ने वैश्विक डिजिटल स्थिरता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। दोनों देशों के बीच भरोसे की कमी और पारदर्शी संवाद के अभाव से यह विवाद और गहराता जा रहा है। आने वाले समय में अंतरराष्ट्रीय सहयोग और मजबूत साइबर नीतियाँ ही इस संकट का स्थायी समाधान बन सकती हैं।