दुनिया भर में ऊर्जा बाजार (Global Energy Market) एक बार फिर उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा है। तेल और गैस की कीमतों में लगातार उतार-चढ़ाव ने न केवल औद्योगिक देशों बल्कि विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिए भी चिंता बढ़ा दी है। विशेषज्ञों का कहना है कि रूस-अमेरिका तनाव, मध्य पूर्व की अस्थिर स्थिति और वैश्विक मांग में गिरावट के कारण यह स्थिति और गंभीर हो सकती है।
तेल और गैस की कीमतों में अस्थिरता
पिछले कुछ हफ्तों में कच्चे तेल (Crude Oil) की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में भारी उतार-चढ़ाव देखने को मिला है। ब्रेंट क्रूड की कीमत कभी $90 प्रति बैरल तक पहुंची, तो कभी $82 तक गिर गई। गैस बाजार में भी आपूर्ति की कमी और भंडारण संकट से दाम तेजी से बढ़े हैं। यूरोप और एशिया के कई देशों को ऊर्जा आयात के लिए अधिक भुगतान करना पड़ रहा है। यह अस्थिरता न केवल ऊर्जा क्षेत्र को बल्कि मैन्युफैक्चरिंग, ट्रांसपोर्ट और फर्टिलाइज़र उद्योग को भी प्रभावित कर रही है।
अस्थिरता के कारण
- रूस-अमेरिका तनाव: रूस पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों ने तेल की आपूर्ति पर दबाव बनाया है।
- मध्य पूर्व में अस्थिरता: ईरान और इस्राइल के बीच बढ़ता तनाव भी आपूर्ति श्रृंखला को प्रभावित कर रहा है।
- वैश्विक मांग में उतार-चढ़ाव: चीन और यूरोप में औद्योगिक गतिविधियों में कमी से मांग कमजोर हुई है।
- नवीकरणीय ऊर्जा की ओर रुझान: ग्रीन एनर्जी की बढ़ती ओरिएंटेशन ने परंपरागत ऊर्जा बाजार को अस्थिर किया है।
आर्थिक प्रभाव
Global Energy Market की यह स्थिति कई देशों की अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रही है। भारत और चीन जैसे बड़े ऊर्जा आयातक देशों पर महंगाई का दबाव बढ़ रहा है। अमेरिका और यूरोप में ईंधन लागत बढ़ने से उपभोक्ता खर्च में कमी आई है। कई देशों के फॉरेक्स रिज़र्व पर भी तेल आयात के कारण असर देखा जा रहा है।
विशेषज्ञों की राय
ऊर्जा विशेषज्ञों का कहना है कि मौजूदा अस्थिरता अस्थायी नहीं है। जब तक राजनीतिक और भू-आर्थिक परिस्थितियाँ स्थिर नहीं होतीं, बाजार में उतार-चढ़ाव बना रहेगा। कई देशों ने अब वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत जैसे सौर और पवन ऊर्जा में निवेश बढ़ाना शुरू किया है ताकि भविष्य में तेल पर निर्भरता कम की जा सके।