शंघाई सहयोग संगठन (SCO Summit 2025) के मंच से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बड़ा बयान देकर भारत-चीन संबंधों पर वैश्विक स्तर पर बहस छेड़ दी है। मोदी ने साफ शब्दों में कहा कि भारत और चीन के रिश्तों को “तीसरे देश के चश्मे” से नहीं देखा जाना चाहिए। भले ही उन्होंने किसी देश का नाम नहीं लिया, लेकिन कूटनीतिक हलकों का मानना है कि यह बयान सीधे तौर पर अमेरिका और खासकर पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों की ओर इशारा करता है।
SCO Summit में भारत-चीन रिश्ते केंद्र में
तियानजिन शहर में आयोजित इस बार के SCO शिखर सम्मेलन में भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय संबंधों पर सबकी नजरें टिकी रहीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात को लेकर कयास लगाए जा रहे थे कि दोनों देश सीमा विवाद, व्यापारिक रिश्तों और वैश्विक चुनौतियों पर क्या रुख अपनाएंगे।
मोदी ने बैठक में कहा, “भारत और चीन दो बड़े एशियाई देश हैं। हमारे संबंधों को आपसी विश्वास, सम्मान और संवेदनशीलता पर आधारित होना चाहिए। हमें अपने रिश्तों को तीसरे देश के नजरिए से देखने की बजाय सीधे संवाद के जरिए आगे बढ़ाना चाहिए।”
तीसरे देश का मतलब कौन?
मोदी का यह बयान ऐसे समय पर आया है जब अमेरिका ने चीन पर टैरिफ नीतियां कड़ी की हैं और भारत को भी अप्रत्यक्ष रूप से उनके असर का सामना करना पड़ रहा है। कूटनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि मोदी का “तीसरे देश का चश्मा” बयान दरअसल अमेरिका और विशेष रूप से डोनाल्ड ट्रंप की ओर संकेत है, जिन्होंने अपने कार्यकाल में बार-बार भारत-चीन रिश्तों पर टिप्पणी की थी।
ट्रंप ने अक्सर चीन को भारत के लिए खतरा बताया और दोनों देशों के बीच तनाव को लेकर बयान दिए। हालांकि, भारत की विदेश नीति हमेशा से ही स्ट्रेटेजिक ऑटोनॉमी यानी रणनीतिक स्वतंत्रता पर आधारित रही है। मोदी के ताजा बयान को इसी नीति की पुनः पुष्टि माना जा रहा है।
1962 युद्ध से लेकर गलवान झड़प तक का तनाव
भारत और चीन के रिश्ते हमेशा उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं। 1962 का युद्ध हो या 2020 की गलवान घाटी की झड़प, इन घटनाओं ने दोनों देशों के बीच गहरा अविश्वास पैदा किया। हालांकि, दोनों देशों ने समय-समय पर बातचीत और समझौतों के जरिए संबंध सुधारने की कोशिश भी की है।
मोदी का यह बयान बताता है कि भारत, चीन के साथ समस्याओं को सीधे बातचीत से सुलझाना चाहता है, न कि किसी तीसरे देश की मध्यस्थता से।
अमेरिका की टैरिफ नीतियां और भारत की चिंता
इस समय अमेरिका ने चीन से आयात होने वाले कई उत्पादों पर भारी टैरिफ लगाया है। विशेषज्ञों का कहना है कि इसका अप्रत्यक्ष असर भारत पर भी पड़ सकता है, क्योंकि भारत चीन से कई कच्चे माल और इलेक्ट्रॉनिक्स आयात करता है।
पूर्व RBI गवर्नर रघुराम राजन पहले ही चेतावनी दे चुके हैं कि अगर अमेरिका की नीतियों के चलते चीन पर दबाव बढ़ा, तो भारतीय कंपनियों को ज्यादा कीमत चुकानी पड़ सकती है। मोदी के बयान को इसी संदर्भ में देखा जा रहा है कि भारत-चीन संबंधों को अमेरिका की नीतियों से अलग रखकर ही समझा जाना चाहिए।
मोदी-जिनपिंग मुलाकात से क्या संकेत मिले?
प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई मुलाकात में सीमा विवाद, व्यापार, और वैश्विक सहयोग पर बातचीत हुई। मोदी ने जहां आपसी सम्मान और संवेदनशीलता की बात की, वहीं जिनपिंग ने भी स्थिरता और शांति पर जोर दिया।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह मुलाकात दोनों देशों के रिश्तों को “रीसेट” करने का मौका हो सकती है। हालांकि, जमीन पर स्थिति अभी भी चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि LAC (लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल) पर सैनिकों की तैनाती और बुनियादी ढांचा निर्माण दोनों देशों द्वारा जारी है।
भारत की विदेश नीति का संकेत
मोदी का यह बयान केवल भारत-चीन संबंधों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारत की व्यापक विदेश नीति का भी हिस्सा है। भारत यह संदेश देना चाहता है कि वह अपनी रणनीति किसी तीसरे देश के दबाव में आकर नहीं बनाएगा।
भू-राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भारत “बैलेंसिंग पावर” की भूमिका निभाना चाहता है—एक ओर चीन के साथ सीमा विवाद सुलझाना, तो दूसरी ओर अमेरिका और रूस जैसे वैश्विक खिलाड़ियों के साथ भी मजबूत साझेदारी बनाए रखना।
निष्कर्ष
SCO Summit 2025 में पीएम मोदी का बयान भारत-चीन संबंधों की दिशा तय करने में अहम साबित हो सकता है। “तीसरे देश के चश्मे” से रिश्तों को न देखने की बात कर मोदी ने स्पष्ट संकेत दिया है कि भारत अपने पड़ोसी चीन से बातचीत सीधे करना चाहता है, न कि किसी बाहरी ताकत की नजर से।
यह बयान न केवल ट्रंप की नीतियों पर अप्रत्यक्ष टिप्पणी है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि भारत अपनी विदेश नीति को स्वतंत्र और संतुलित बनाए रखना चाहता है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह कूटनीतिक संदेश भारत-चीन संबंधों में नया मोड़ ला पाता है या नहीं।
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