PM Modi का चीन दौरा 2020 की गालवाँ झड़प के बाद पहली बार हो रहा है। इस यात्रा को सिर्फ कूटनीति की औपचारिकता नहीं, बल्कि दोनों देशों के रिश्तों में नए दरवाजे खोलने वाले कदम के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि, चीन की आम जनता और विशेषज्ञों के बीच इस पर अलग-अलग राय है—किसी को इसमें सहयोग की संभावना दिख रही है तो कोई अभी भी सतर्क रुख अपनाए हुए है।
चीनी जनता का नजरिया
बीजिंग की सड़कों पर और सोशल मीडिया पर मोदी की यात्रा पर अलग-अलग प्रतिक्रियाएँ देखने को मिल रही हैं।
- कुछ लोग इसे “ड्रैगन और एलिफैंट की साझेदारी” का मौका मान रहे हैं, जो एशिया की ताकत को और मजबूत कर सकता है।
- वहीं कुछ का कहना है कि हाल के वर्षों में सीमा विवाद और राजनीतिक अविश्वास की वजह से रिश्ते इतनी आसानी से सुधरने वाले नहीं हैं।
- युवाओं के बीच यह चर्चा भी है कि भारत और चीन को अगर तकनीक और व्यापार में साझेदारी बढ़ानी है, तो पहले आपसी भरोसे का माहौल बनाना होगा।
विशेषज्ञ क्या कहते हैं?
चीन के कई राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि मोदी का यह दौरा सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं है, बल्कि रणनीतिक महत्व रखता है। उनका मानना है कि अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते तनाव के बीच भारत का रुख चीन के लिए अहम हो जाता है।
कुछ विशेषज्ञ इसे “सावधानीपूर्वक संतुलन” (hedging strategy) बताते हैं—यानि भारत अमेरिका से दूरी नहीं बनाना चाहता, लेकिन चीन के साथ संवाद बनाए रखकर एशियाई राजनीति में अपनी स्थिति मजबूत करना चाहता है।
भारतीय विशेषज्ञों की राय भी यही है कि मोदी की यात्रा अगर सीमा पर भरोसा बढ़ाने और व्यापारिक रिश्तों में सुधार की दिशा में कदम बढ़ाती है, तो यह दोनों देशों के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है।
व्यापार और रणनीति की नई दिशा
इस दौरे में दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़ाने पर चर्चा होने की संभावना है। भारत आईटी, फार्मा और कृषि निर्यात को लेकर आगे बढ़ना चाहता है, जबकि चीन अपने उद्योगों के लिए बड़ा बाजार तलाश रहा है।
साथ ही, सुरक्षा और सीमा स्थिरता को लेकर भी बातचीत अहम रहेगी। हाल ही में दोनों देशों ने सीमावर्ती इलाकों में विश्वास निर्माण उपाय (Confidence Building Measures) लागू करने की दिशा में छोटे-छोटे कदम उठाए हैं।
SCO समिट का मंच
यह यात्रा शंघाई सहयोग संगठन (SCO) समिट के मौके पर हो रही है, जहां रूस और मध्य एशियाई देशों के नेता भी मौजूद रहेंगे। ऐसे में मोदी और शी जिनपिंग की मुलाकात सिर्फ द्विपक्षीय रिश्तों तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन का भी संदेश देगी।
निष्कर्ष
मोदी का बीजिंग दौरा भारत-चीन रिश्तों में एक नई शुरुआत का संकेत हो सकता है। आम चीनी जनता इस पर आशा और शंका दोनों नजरों से देख रही है, जबकि विशेषज्ञ मानते हैं कि यह कदम “एशियाई राजनीति का संतुलन” तय कर सकता है।
अगर इस यात्रा के दौरान व्यापारिक साझेदारी, सीमा स्थिरता और आपसी भरोसे को लेकर ठोस पहल होती है, तो आने वाले सालों में एशिया की राजनीति में यह दौरा मील का पत्थर साबित हो सकता है।
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