पटना: Bihar की सियासत एक बार फिर गर्म हो गई है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने हाल ही में राज्य में अपनी “वोटर अधिकार यात्रा” की शुरुआत की है, जिसका उद्देश्य आम मतदाताओं तक सीधे पहुँचना और उन्हें उनके संवैधानिक अधिकारों के प्रति जागरूक करना बताया जा रहा है। इस यात्रा के राजनीतिक मायने गहरे हैं क्योंकि 2025 के विधानसभा चुनाव और उसके बाद 2029 के लोकसभा चुनाव की तैयारियाँ अब खुलकर दिखने लगी हैं।
Rahul Gandhi की रणनीति
राहुल गांधी की यह यात्रा कांग्रेस के लिए नई ऊर्जा लाने की कोशिश मानी जा रही है। कांग्रेस लंबे समय से बिहार की राजनीति में कमजोर स्थिति में रही है। लेकिन इस बार राहुल गांधी मतदाताओं के बीच ‘रोजगार, शिक्षा, महंगाई और सामाजिक न्याय’ जैसे मुद्दों को उठाकर सीधा संवाद करने की कोशिश कर रहे हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि राहुल गांधी अब अपने पुराने आक्रामक रुख के साथ-साथ जमीनी स्तर पर लोगों से जुड़ने पर भी जोर दे रहे हैं। उनका यह प्रयास कांग्रेस के लिए ‘मिसिंग कनेक्ट’ को पूरा करने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।
क्या NDA हो रहा है चिंतित?
एनडीए गठबंधन, जिसमें भाजपा, जेडीयू और अन्य दल शामिल हैं, अब तक बिहार में मजबूत पकड़ बनाए हुए है। लेकिन राहुल गांधी की इस यात्रा ने सत्ता पक्ष में हलचल जरूर बढ़ा दी है।
भाजपा सूत्रों का मानना है कि कांग्रेस की इस मुहिम से भले ही तुरंत कोई बड़ा असर न दिखे, लेकिन विपक्ष को एकजुट करने और नए वोटर्स—खासतौर पर युवाओं और पहली बार वोट डालने वालों—पर इसका असर पड़ सकता है।
एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “हमें यह मानना होगा कि राहुल गांधी इस बार लगातार सक्रिय हैं। उनकी यात्रा का मकसद लोगों को प्रभावित करना है। हमें अपनी रणनीति और बूथ स्तर की तैयारियों को और मजबूत करना होगा।”
BJP की बदली हुई रणनीति
सूत्रों के मुताबिक, भाजपा अब अपने अभियान को और आक्रामक बनाने की तैयारी में है। पार्टी ने ‘लाभार्थी वोट बैंक’ यानी उन लोगों तक पहुंच बढ़ाने की योजना बनाई है, जिन्हें सरकार की योजनाओं से सीधा फायदा हुआ है।
इसके साथ ही भाजपा राहुल गांधी की यात्रा के दौरान उठाए गए मुद्दों का जवाब देने के लिए अलग काउंटर-नैरेटिव तैयार कर रही है। पार्टी का फोकस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता, विकास कार्यों और केंद्र की योजनाओं पर रहेगा।
जेडीयू और क्षेत्रीय समीकरण
बिहार की राजनीति में जेडीयू की भूमिका भी अहम है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भले ही फिलहाल एनडीए में हैं, लेकिन उनका राजनीतिक इतिहास बताता है कि वे समय-समय पर गठबंधन बदलते रहे हैं। राहुल गांधी की यात्रा से जेडीयू भी सतर्क है क्योंकि अगर कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल साथ आते हैं, तो 2025 का समीकरण काफी दिलचस्प हो सकता है।
मतदाताओं पर असर
राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा का असली असर मतदाताओं के रुख से ही सामने आएगा।
- युवा वर्ग: बेरोजगारी और शिक्षा के मुद्दे पर राहुल गांधी का फोकस युवाओं को आकर्षित कर सकता है।
- महिलाएं: कांग्रेस की कोशिश है कि महंगाई और महिला सुरक्षा के मुद्दे पर महिला वोटर्स को जोड़ सके।
- पिछड़ा और दलित वर्ग: सामाजिक न्याय का मुद्दा कांग्रेस के लिए इन तबकों में समर्थन जुटाने का साधन बन सकता है।
राजनीतिक विशेषज्ञ क्या कहते हैं?
राजनीतिक विश्लेषक डॉ. अरविंद चौधरी के अनुसार, “राहुल गांधी की यह यात्रा कांग्रेस को बिहार में नई पहचान दिलाने का प्रयास है। यह कहना जल्दबाजी होगी कि इससे एनडीए कमजोर होगा, लेकिन इतना तय है कि भाजपा और सहयोगी दल अब और सक्रिय होकर काम करेंगे।”
निष्कर्ष
राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा ने बिहार की राजनीति में नई चर्चा छेड़ दी है। एनडीए खेमे में चिंता भले ही बाहर से न दिखे, लेकिन अंदर ही अंदर भाजपा और उसके सहयोगी दल अपनी रणनीति पर फिर से काम करने लगे हैं।
आगामी विधानसभा चुनावों से पहले इस तरह की यात्राएँ न सिर्फ माहौल तैयार करती हैं बल्कि मतदाताओं के बीच राजनीतिक संदेश भी छोड़ती हैं। आने वाले महीनों में यह साफ होगा कि राहुल गांधी की यह यात्रा कांग्रेस के लिए वरदान साबित होगी या सिर्फ एक औपचारिक पहल रह जाएगी।
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