देश की सर्वोच्च अदालत Supreme Court ने मुस्लिम समुदाय में प्रचलित Talaq-e-Hasan और अन्य सभी प्रकार के एकतरफा न्यायेतर तलाक (Unilateral Extra-Judicial Divorce) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अंतिम सुनवाई की तारीख तय कर दी है। यह ऐतिहासिक सुनवाई 19 और 20 नवंबर 2025 को होगी। इस मामले में अदालत का फैसला न केवल Muslim समाज में महिलाओं के अधिकारों पर असर डालेगा, बल्कि देश के तलाक कानूनों में भी बदलाव की दिशा तय कर सकता है।
क्या है Talaq-e-Hasan?
तलाक-ए-हसन मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत तलाक देने की एक प्रथा है, जिसमें पति तीन महीने की अवधि में, हर महीने एक बार ‘तलाक’ कहकर शादी को समाप्त कर सकता है।
- पहले महीने में ‘तलाक’ बोला जाता है।
- फिर एक महीने का इंतजार होता है (जिसे ‘इद्दत’ अवधि कहा जाता है)।
- दूसरे महीने में फिर से ‘तलाक’ बोला जाता है।
- तीसरे महीने में अंतिम बार ‘तलाक’ कहने के बाद विवाह खत्म माना जाता है।
इस प्रक्रिया में पत्नी की सहमति या अदालत की दखल जरूरी नहीं होती, जिसके कारण इसे महिलाओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताया जा रहा है।
कौन-कौन से आयोग से मांगी गई राय?
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जोयमाल्या बागची की पीठ ने इस मामले पर गंभीरता दिखाते हुए राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW), राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) से अपने-अपने विचार देने को कहा है।
अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि यदि किसी धार्मिक ग्रंथ, किताब या पर्सनल लॉ में इस प्रथा का स्पष्ट उल्लेख हो, तो उसे भी सबूत के रूप में अदालत के समक्ष रखा जाए।
केंद्र सरकार का रुख
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने कहा कि अब तक इस मामले में कोई जवाबी हलफनामा दाखिल नहीं किया गया है। हालांकि, 2017 के ट्रिपल तलाक मामले (Shayara Bano vs Union of India) में केंद्र ने साफ तौर पर कहा था कि वह सभी प्रकार के एकतरफा तलाक का विरोध करता है, क्योंकि यह महिलाओं के सम्मान और समानता के अधिकार का उल्लंघन है।
कितनी याचिकाएं और किसने दायर की हैं?
सुप्रीम कोर्ट इस मामले में कुल 9 याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है। इनमें गाजियाबाद निवासी बेनजीर हिना की याचिका प्रमुख है। हिना का कहना है कि उनके पति ने ‘तलाक-ए-हसन’ का इस्तेमाल करके शादी खत्म कर दी, जिससे उनका जीवन पूरी तरह बदल गया। उन्होंने अदालत से मांग की है कि इस प्रथा को असंवैधानिक घोषित किया जाए।
महत्व क्यों रखता है यह मामला?
- यह मामला देश में जेंडर इक्वालिटी और महिलाओं के अधिकारों से सीधा जुड़ा है।
- यदि सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार दिया, तो मुस्लिम पर्सनल लॉ में बड़े बदलाव संभव हैं।
- यह फैसला तलाक के मामलों में महिलाओं को अधिक कानूनी सुरक्षा और बराबरी का अधिकार दे सकता है।
19-20 नवंबर को होने वाली यह सुनवाई न केवल एक कानूनी बहस होगी, बल्कि देश के सामाजिक ढांचे में बड़े बदलाव की संभावना भी रखती है। लाखों मुस्लिम महिलाओं की नजरें सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हैं, जो तय करेगा कि सिर्फ ‘तलाक’ बोलकर शादी तोड़ने का चलन हमेशा के लिए खत्म होगा या नहीं।
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